Breaking News
नमस्कार हमारे न्यूज पोर्टल मेट्रो हिन्दुस्तान न्यूज मे आपका स्वागत हैं ,यहाँ आपको हमेसा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर ओर विज्ञापन के लिए संपर्क करे , श्रीमति सरिता देवी (चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर) 91+ 9117714444 ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें , मेट्रो हिन्दुस्तान न्यूज- श्रीमति सरिता देवी (चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर) 91+ 9117714444 ईमेल आई डी - Metrohindustannewsnational.com@gmail.com ,

क्यों मानते हैं अतिथि को भगवान?

भारत संस्कृति और परंपराओं का देश है। यहाँ लोग परंपराओं का विशेष आदर करते हैं। यह परंपराएँ हमारी जड़ें हैं, जो हमें हमारी संस्कृति और देश से बाँधे हुए है। हमारे देश में अतिथि का विशेष सम्मान किया जाता रहा है। कुछ भी हो जाए परन्तु घर आए अतिथि को बिना भोजन किए भेज देना, उचित नहीं माना जाता है। अतिथि को भगवान के समान पूज्यनीय समझा जाता है। घर का सदस्य भूखा रह जाए परन्तु अतिथि भूखा नहीं रहना चाहिए। भारत की यह परंपरा आज भी वैसी ही है। उसमें कुछ परिवर्तन ज़रूर आया है परन्तु वह अब भी विद्यमान है। यदि कोई अतिथि घर में आता है, तो उसे बहुत प्रेम से खिलाया-पिलाया जाता है। यदि अतिथि नाराज़ हुआ तो माना जाता है कि देवता नाराज़ हो गए हैं। इस अतिथ्यभाव के लिए अनेक प्रकार की कथाएँ विद्यमान हैं। प्राचीन समय की बात है एक परम दानी राजा रंतिदेव थे। एक बार इन्द्र के कोप के कारण उन्हें परिवार सहित जंगल में क्षरण लेनी पड़ी। दो वक्त की रोटी भी उनके लिए जुटाना कठिन हो गया। 48 दिनों तक उन्हें खाने को कुछ नहीं मिला। 49वें दिन उन्होंने थोडा-सा पानी और भोजन प्राप्त हुआ। वह अपने परिवार के साथ उस भोजन को करने बैठे ही थे कि उनके घर में एक बाह्मण आ पहुँचा। राजा ने अपने घर आए अतिथि को भूखा जान, उसे थोड़ा-सा भोजन दे दिया। वह फिर भोजन करने बैठे ही थे कि उनके द्वार में एक चांडाल अपने कुत्तों के साथ आ पहुँचा। वे सब भूखे और प्यासे थे। अपने द्वार पर आए अतिथि को राजा ने कष्ट में देखा और उसे बाकी बचा सारा भोजन और पानी दे दिया। यह हमारे संस्कृति में रचा-बसा है। मुम्बई का ताज होटल हमारे अतिथ्य का ज्वलंत उदाहरण है। वहाँ के कर्मचारियों ने आंतकवादी हमले के समय होटल से भागने के स्थान पर देश में आए अतिथियों की रक्षा करना अपना परम कर्तव्य समझा। कई कर्मचारियों ने सिर्फ अपने प्राण इसलिए गंवा दिए क्योंकि वे अपने देश में आए अतिथियों की रक्षा और सेवा को अपना धर्म मानते थे। उनके इस कार्य ने पूरे विश्व में भारत का सम्मान बड़ा दिया। कई बड़े विदेशी होटल के प्रबंधक कर्मचारियों के इस व्यवहार हैरान थे। उनके सम्मुख हमने यह सिद्ध कर दिया कि हम आज भी अतिथि को देवता के समान मानते हैं। इसीलिए तो हमारे पुराने ऋषि-मुनियों ने कहा है- अतिथि देवो भव:

Live Cricket Live Share Market

Check Also

चुनाव आयोग दो साल में खरीदेगा 16 लाख पेपर ट्रेल युक्त EVM

🔊 Listen to this नई दिल्ली:  ईवीएम मशीनों के लिए अगले दो साल में 16 …